वो जो करते थे बात बात का ग़म उन को रास आ गया हयात का ग़म ऐ शब-ए-हिज्र मेरे सीने पर तू ने रक्खा है काएनात का ग़म तू भी सूरज है अपनी हस्ती का तुझ को मा'लूम क्या हो रात का ग़म चल ग़म-ए-दिल ग़म-ए-जहान लिए भूल जाएँ तअ'ल्लुक़ात का ग़म आज फ़ुर्सत मिली थी बाहर से खा गया अंदरून-ए-ज़ात का ग़म वो पयम्बर हैं अपनी रातों के जिन पे उतरा है चाँद-रात का ग़म