तू मै-कदा में इक ऐसा निज़ाम पैदा कर कि सब के लब को जो पहुँचे वो जाम पैदा कर रिदा-ए-हिज्र में लिपटी रहे तबीअत-ए-शौक़ सहर की याद भुला दे वो शाम पैदा कर लबों पे नाम अगर आ गया तो फ़ख़्र नहीं जो हो सके तो दिलों में मक़ाम पैदा कर सुख़न मुहाल नहीं उन की अंजुमन में मगर बस इतनी शर्त है इक ख़ुश-कलाम पैदा कर