तू मेरी नींदें तलाशता है यही बहुत है तू मिरे ख़्वाबों में जागता है यही बहुत है ज़माना तुझ को हरीफ़ कह ले उसे ये हक़ है मिरी नज़र में तू देवता है यही बहुत है बहार में तू न जाने कैसे कहाँ पे ग़म था ख़िज़ाँ में मुझ को पुकारता है यही बहुत है जहाँ चराग़ों की लौ ख़मोशी से चुप हुई हैं वहाँ पे आख़िर तू बोलता है यही बहुत है ख़यालों के ये सराब तुझ को डुबो ही देंगे जिसे तू कहता है रास्ता है यही बहुत है गए दिनों की अजीब यादों को भूल जाओ तुझे इक 'आलम' जो चाहता है यही बहुत है