तू मिरे इश्क़ की रूदाद नहीं समझेगा क्यूँ मोहब्बत में हूँ बर्बाद नहीं समझेगा उम्र भर क़ैद में रहने की अज़िय्यत को कभी जो परिंदा रहा आज़ाद नहीं समझेगा अहद-ए-नौ से कोई उम्मीद लगाना है फ़ुज़ूल अब कोई मक़्सद-ए-फ़रियाद नहीं समझेगा दोस्ती क्या है फ़क़त दोस्त समझ सकता है जिस ने मतलब से किया याद नहीं समझेगा दिल की वीरान गली हम ने सजाई कैसे क्यूँ किया दर्द से आबाद नहीं समझेगा तुझ से मैं शिकवा गिला कैसे करूँ 'साद' आख़िर ये अतिय्या है ख़ुदा-दाद नहीं समझेगा