सदाक़त की यहाँ इज़्ज़त नहीं है वफ़ादारी की कुछ क़ीमत नहीं है जहाँ से वो गया था मैं वहीं हूँ मगर जीने में वो लज़्ज़त नहीं है ज़बाँ पे तल्ख़ियाँ आँखों में ग़ुस्सा मगर किरदार में ख़िस्सत नहीं है वक़ार अपना नहीं कोताह लेकिन तिरे रुत्बे सी भी क़ामत नहीं है रहे मिट्टी की ख़ुश्बू याद हर-दम तो साँसें रोकती ग़ुर्बत नहीं है जहालत में पली दुनिया में शायद तअक़्क़ुल से बड़ी ने'मत नहीं है चला चल सर उठा कर यार 'नाक़िद' लगी अब तक कोई तोहमत नहीं है