तू मुझ को सुन रहा है तो सुनाई क्यूँ नहीं देता ये कुछ इल्ज़ाम हैं मेरे सफ़ाई क्यूँ नहीं देता मिरे हँसते हुए लहजे से धोका खा रहे हो तुम मिरा उतरा हुआ चेहरा दिखाई क्यूँ नहीं देता नज़र-अंदाज़ कर रक्खा है दुनिया ने तुझे कब से किसी दिन अपने होने की दुहाई क्यूँ नहीं देता मैं तुझ को देखने से किस लिए महरूम रहता हूँ अता करता है जब नज़रें रसाई क्यूँ नहीं देता कई लम्हे चुरा कर रख लिए तू अलग मुझ से तू मुझ को ज़िंदगी-भर की कमाई क्यूँ नहीं देता ख़ुद अपने-आप को ही घेर कर बैठा है तू कब से अब अपने-आप से ख़ुद को रिहाई क्यूँ नहीं देता मैं तुझ को जीत जाने की मुबारकबाद देता हूँ तू मुझ को हार जाने की बधाई क्यूँ नहीं देता