तू न था तेरी तमन्ना देखने की चीज़ थी दिल न माना वर्ना दुनिया देखने की चीज़ थी क्या ख़बर मेरे जुनूँ को शहर क्यूँ रास आ गया ऐसे आलम में तो सहरा देखने की चीज़ थी तुम को ऐ आँखो कहाँ रखता मैं कुंज-ए-ख़्वाब में हुस्न था और हुस्न तन्हा देखने की चीज़ थी लम्स की लौ में पिघलता हुज्रा-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ात तुम भी होते तो अंधेरा देखने की चीज़ थी आ गया मेरे मकाँ तक और आ कर रह गया बारिशों के ब'अद दरिया देखने की चीज़ थी धूप कहती ही रही मैं धूप हूँ मैं धूप हूँ अपने साए पर भरोसा देखने की चीज़ थी शाम के साए में जैसे पेड़ का साया मिले मेरे मिटने का तमाशा देखने की चीज़ थी