कहीं तो इंतिहा भी हो किसी के इंतिज़ार की जिएँगे और कब तलक ये ज़िंदगी उधार की मिलेगी फ़त्ह या शिकस्त वक़्त ही बताएगा मैं लड़ रहा हूँ ज़िंदगी से जंग आर-पार की भटक रहे थे मुद्दतों से हम भी जिस्म-ओ-जाँ लिए उसे भी एक उम्र से तलाश थी शिकार की समझ सके न हम कभी किसी की बे-यक़ीनियाँ भरी हुई थी आँख में तो धूल ए'तिबार की जुनूँ हवा तड़प हुई ख़लिश हुई कि ग़म हुआ ये दौलतें हैं इश्क़ की ये ने'मतें है प्यार की क़दम मिरे जम हुए हैं एक ही मक़ाम पर वो खींच कर चला गया लकीर यूँ हिसार की उसे किसी की तरह क्यूँ बता रहे हो ऐ 'पवन' मिसाल ढूँडते हो क्यूँ ख़ुदा के शाहकार की