तू नहाने घाट पर आया तो दरिया जल गया आतिश-ए-रुख़ से तिरे जो कुछ वहाँ था जल गया क्या बताऊँ अपने मैं सोज़-ए-दरूँ का माजरा था पहनने का इरादा ही कि कुर्ता जल गया अब तो ग़म-ख़ाने में अपने इक चटाई भी नहीं आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया मेरी आह-ए-आतिशीं की ज़द में शैख़ आ ही गए सिर्फ़ दाढ़ी बच गई पूरा अमामा जल गया आफ़्ताब-ए-हश्र की गर्मी भी कितनी बढ़ गई बच गए आसी फ़रिश्तों का नविश्ता जल गया बज़्म-ए-ख़ूबाँ में लगी आग आह-ए-सोज़ाँ से मिरी उन की सारी जल गई उन का दुपट्टा जल गया ठीक 'ग़ालिब' ही के दिल की तरह था 'हाशिम' का दिल देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया