तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दिया वहीं महव-ए-हैरत-ए-बे-ख़ुदी मुझे आइना सा बना दिया वो जो नक़्श-ए-पा की तरह रही थी नुमूद अपने वजूद की सो कशिश ने दामन-ए-नाज़ की उसे भी ज़मीं से मिटा दिया रग-ओ-पै में आग भड़क उठी फुंके है पड़ा ये सभी बदन मुझे साक़िया मय-ए-आतिशीं का ये जाम कैसा पिला दिया जभी जा के मकतब-ए-इश्क़ में सबक़-ए-मक़ाम-ए-फ़ना लिया जो लिखा पढ़ा था 'नियाज़' ने सो वो साफ़ दिल से भुला दिया