ज़िंदगी के तिलिस्म पढ़ रहा हूँ क़ुफ़्ल खुलने का इस्म पढ़ रहा हूँ हुस्न पर बा'द में करूँगा बात मैं अभी तेरा जिस्म पढ़ रहा हूँ क्यों न टूटेगा नफ़रतों का फ़ुसूँ मैं मोहब्बत का इस्म पढ़ रहा हूँ उस की आँखों में हैं छुपे जो राज़ उन का सारा तिलिस्म पढ़ रहा हूँ आदमी के कई हैं रूप 'सहर' इस लिए क़िस्म क़िस्म पढ़ रहा हूँ