तू ने जिसे बनाया उस को बिगाड़ डाला ऐ चर्ख़ मैं ने अपनी ‘अर्ज़ी को फाड़ डाला बर्बाद क्या अजल ने मुझ को किया ये कहिए रूह-ए-रवाँ ने अपने दामन को झाड़ डाला दस्तार-ओ-पैरहन गुम और जेब-ओ-कीसा ख़ाली तहज़ीब-ए-मग़रिबी ने हम को चिथाड़ डाला बुनियाद-ए-दीं हवा-ए-दुनिया ने मुंहदिम की तूफ़ान ने शजर को जड़ से उखाड़ डाला अच्छा मिला नतीजा मुझ को मुरासलत का क़ासिद को क़त्ल कर के नामे को फाड़ डाला