तेरा कूचा न छुटेगा तिरे दीवाने से इस को का'बे से न मतलब है न बुत-ख़ाने से जो कहा मैं ने करो कुछ मिरे रोने का ख़याल हँस के बोले मुझे फ़ुर्सत ही नहीं गाने से ख़ैर चुप रहिए मज़ा ही न मिला बोसे का मैं भी बे-लुत्फ़ हुआ आप के झुँझलाने से मैं जो कहता हूँ कि मरता हूँ तो फ़रमाते हैं कार-ए-दुनिया न रुकेगा तिरे मर जाने से रौनक़-ए-‘इश्क़ बढ़ा देती है बेताबी-ए-दिल हुस्न की शान फ़ुज़ूँ होती है शरमाने से दिल-ए-सद-चाक से खुल जाएँगे हस्ती के ये पेच बल निकल जाएँगे इस ज़ुल्फ़ के इस शाने से सफ़हा-ए-दहर पे हैं नक़्श-ए-मुख़ालिफ़ 'अकबर' एक उभरता है यहाँ एक के मिट जाने से