तू ने जो कुछ कि किया मेरे दिल-ए-ज़ार के साथ आग ने भी न किया वो तो ख़स-ओ-ख़ार के साथ आँख उठा कर भी न देखा कभी तू ने ज़ालिम सर पटक मर गए लाखों तिरी दीवार के साथ ये कई तार हैं वो रिश्ता-ए-जाँ है यकसर ग़लत उस ज़ुल्फ़ की तश्बीह है ज़ुन्नार के साथ रात दिन रहती है जूँ दीदा-ए-तस्वीर खुली आँख जब से लगी उस आइना-रुख़्सार के साथ देखियो गिर न पड़े दीजो उसे ऐ क़ासिद दिल-ए-बेताब लिपटता है मैं तूमार के साथ क्या अजब ये है कि वो मुझ से मिला रहता है गुल को पैवस्तगी लाज़िम है कि हो ख़ार के साथ है सज़ा-वार अगर ऐसे को दीजे दिल-ओ-दीं हम भी देखा उसे कल दूर से 'बेदार' के साथ