तुझ बिन आराम-ए-जाँ कहाँ है मुझे ज़िंदगानी वबाल-ए-जाँ है मुझे गर यही दर्द-ए-हिज्र है तेरा ज़ीस्त का अपनी कब गुमाँ है मुझे मिस्ल-ए-तूती हज़ार मअनी में सेहर-ए-साज़-ए-सुख़न ज़बाँ है मुझे है ख़याल उस का माना-ए-गुफ़्तार वर्ना सौ क़ुव्वत-ए-बयाँ है मुझे ख़ामुशी बे-सबब नहीं 'बेदार' बाइस-ए-ज़ीस्तन दहाँ है मुझे