तू ने जो मुझ से फ़ासले रक्खे अच्छा है दूर रास्ते रक्खे मैं न जानूँ तू कौन है मेरा दिल ने क्यूँ तुझ से राब्ते रक्खे साथ मेरा निभाए वो कैसे जो निभाने में दाएरे रक्खे थे मआ'नी ग़ज़ल में तुझ से ही जाने क्यूँ मैं ने फ़लसफ़े रक्खे हादसों में भी हादसे रक्खे कैसे क़िस्मत ने सिलसिले रक्खे पूछती है किताबें भी मुझ से फूल ये किस के वास्ते रक्खे जब था तन्हा सफ़र ही हिस्से में क्यूँ ये यादों के मरहले रक्खे