तू ने कोशिश तो की ज़माने पर लौ बुझी ही नहीं बुझाने पर मेरे हाथों का देखने जादू घर पे आओ कभी तो खाने पर लाश ख़्वाबों की दफ़्न कर आए दर्द अब जा लगा ठिकाने पर कोई सीखे नहीं सिखाने से अक़्ल आती है चोट खाने पर नाम उस के किए हैं दिन भी तो क्यों तमाशा है शब बिताने पर