तू ने कोशिश ज़रा भी की ही नहीं वर्ना ये नाव डूबती ही नहीं इस मोहब्बत में टूटना दिल का फ़र्ज़ होता है लाज़मी ही नहीं इश्क़ का ये दयार है साहिब है ख़ुदा भी यहाँ ख़ुदी ही नहीं कान कब से लगाए बैठी हूँ कोई भी आँख बोलती ही नहीं चाक पे रक्खी रह गई मिट्टी कोई तख़्लीक़ तो हुई ही नहीं मौत पंजे गड़ाए है अपने ज़िंदगी मुझ को छीनती ही नहीं हर मुसव्विर का उस पे दावा है एक तस्वीर जो बनी ही नहीं वक़्त उस ने दिया है मिलने का और मिरे पास में घड़ी ही नहीं कोई 'सरिता' है इस क़दर मुझ में उस से हट कर ग़ज़ल हुई ही नहीं