सर पे सौदा सवार करना था हम को भी दश्त पार करना था पहले सूरज बनाते ख़ुद को तुम फिर अँधेरों पे वार करना था गर हुनर थे तुम्हारे हाथों में शो'ला को आबशार करना था बादलों से यही ग़रज़ थी हमें अपना साया फ़रार करना था हिज्र में जाँ गँवाने वाले तुझे और कुछ इंतिज़ार करना था शौक़ से ही लगाव था हम को शौक़ ही दरकिनार करना था इतनी वुसअ'त का क्या करेगा वो आसमाँ का विचार करना था मौत की सोचते रहे 'सरिता' ज़ीस्त को यादगार करना था