तू शब-ओ-रोज़ से हलकान नज़र आता है चंद ही रोज़ का मेहमान नज़र आता है ख़ुश्क आँखों में बसा दर्द का सहरा देखो हर कोई चाक-गरेबान नज़र आता है अब तलक मेरी समझ में नहीं आया कि ये घर किस के जाने पे बयाबान नज़र आता है डाल रक्खे हैं मोहब्बत के अरीज़े हम ने क्यों ये दरिया तुम्हें सुनसान नज़र आता है चाहता हूँ कि किसी काम ही आ जाऊँ कहीं पर सभी को सफ़र आसान नज़र आता है