तू उरूस-ए-शाम-ए-ख़याल भी तो जमाल-ए-रू-ए-सहर भी है ये ज़रूर है कि ब-ईं हमा मिरा एहतिमाम-ए-नज़र भी है ये मिरा नसीब है हम-नशीं सर-ए-राह भी न मिले कहीं वही मिरा जादा-ए-जुस्तजू वही उन की राहगुज़र भी है न हो मुज़्महिल मिरे हम-सफ़र तुझे शायद उस की नहीं ख़बर इन्हें ज़ुल्मतों ही के दोश पर अभी कारवान-ए-सहर भी है हमा कश्मकश मिरी ज़िंदगी कभी आ के देख ये बेबसी तिरी याद वज्ह-ए-सुकूँ सही वही राज़-ए-दीदा-ए-तर भी है तिरे क़ुर्ब ने जो बढ़ा दिए कभी मिट सके न वो फ़ासले वही पाँव हैं वही आबले वही अपना ज़ौक़-ए-सफ़र भी है ब-हज़ार दानिश-ओ-आगही मिरी मस्लहत है अभी यही मैं 'सुरूर'-ए-रहरव-ए-शब सही मिरी दस्तरस में सहर भी है