तूफ़ान से टकराना उस का तो वतीरा है दिल अश्कों के क़ुल्ज़ुम में छोटा सा जज़ीरा है एहसास नज़ाकत की क्यों मौत न वाक़े' हो हर फूल के आँगन में काँटों का ज़ख़ीरा है दर्ज़ों की लताफ़त में ख़ुशबू ने अमाँ पाई गुल चीरने वाले ने किस शान से चीरा है मुँह-ज़ोर उजाले से बेहतर थी शब-ए-तीरा अब दिल भी परेशाँ है और आँख भी ख़ीरा है हर फूल की सूरत में शाख़ों पे जमा ख़ूँ है ये सहन-ए-चमन क्या है ज़ख़्मों का ज़ख़ीरा है महताब से चेहरों के बे-सूद नज़ारे हैं जब क़ल्ब की दुनिया में छाई शब-ए-तीरा है अल्फ़ाज़ के तेशे से ऐ 'जान' तराश उस को पत्थर के लिबादे में पोशीदा जो हीरा है