तूफ़ाँ है शैख़ क़हरिया है By Ghazal << तुम्हारे लोग कहते हैं कमर... तीरा-रंगों के हुआ हक़ में... >> तूफ़ाँ है शैख़ क़हरिया है जो हर्फ़ है तिस के तहरिया है दिल क्यूँ न भँवर हो आज मेरा चीरा तिरे सर पे लहरिया है तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन ख़ुर्शीद गुल-ए-दोपहरिया है अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी आफ़ाक़ तमाम दहरिया है Share on: