तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया लज़्ज़त को असीरी की कर याद बहुत रोया तस्वीर मिरी तुझ बिन ''मानी'' ने जो खेंची थी अंदाज़ समझ उस का ''बहज़ाद'' बहुत रोया नाले ने तिरे बुलबुल नम चश्म न की गुल की फ़रियाद मिरी सुन कर सय्याद बहुत रोया जुएँ पड़ी बहती हैं जा देख गुलिस्ताँ में तुझ क़द से ख़जिल हो कर शमशाद बहुत रोया आईना जो पानी में है ग़र्क़ ये बाइस है तुझ सख़्त-दिली आगे फ़ौलाद बहुत रोया याँ तक मिरे मशहद से है तिश्ना-लबी पैदा इस सम्त जो हो गुज़रा जल्लाद बहुत रोया 'सौदा' से ये मैं पूछा दिल मैं भी किसी को दूँ वो कर के बयाँ अपनी रूदाद बहुत रोया