तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में दुनिया में ऐसा क्या है जो, आता नहीं वबाल में ढूँडते फिर रहे हैं हम ऐसे शिकारी हाथ को अर्ज़ ओ समा की वुसअतें, क़ैद हों जिस के जाल में पहले वो मेरा ख़्वाब था, अब तो मैं उस का ख़्वाब हूँ मुझ को बता ऐ ज़िंदगी! कौन है किस की चाल में शहर से शहर का सफ़र, ख़्वाब था मेरा हम-सफ़र मैं ने तो जी ली ज़िंदगी, बैठ के एक शाल में ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं रख़्ने न डाल मेरे यार, ख़्वाब की देख-भाल में