तुझ को चाहूँ मिरी मजाल कहाँ बस में लेकिन मिरा ख़याल कहाँ तेरा मिलना मुहाल है लेकिन तू जो चाहे तो फिर मुहाल कहाँ एक लम्हा करम का दे देते मैं ने माँगे थे माह-ओ-साल कहाँ फिर नशेमन क़फ़स में याद आया मैं कहाँ और मिरा ख़याल कहाँ मै-कदा जो रह-ए-हयात में हो गुमरही का फिर एहतिमाल कहाँ दिल ने मुश्किल से चैन पाया था फिर से आया तिरा ख़याल कहाँ वो मिले भी तो अजनबी की तरह पुर्सिश-ए-हाल का सवाल कहाँ जल्वा-ए-हुस्न में हुआ हूँ गुम अब यहाँ जा-ए-क़ील-ओ-क़ाल कहाँ चुप ही बेहतर है इस ज़माने में सुनने वाला है दिल का हाल कहाँ क्या न देखा 'हबीब' दुनिया में याँ से जाने में फिर मलाल कहाँ