तुझ को ही सोचता रहूँ फ़ुर्सत नहीं रही और फिर वो पहले वाली तबीअत नहीं रही तुझ से बिछड़ के ज़िंदा रहा तो पता चला अब इस क़दर भी तेरी ज़रूरत नहीं रही मैं सर्द हो गया हूँ कि अब तेरे लम्स में गुज़री रुतों की आतिशीं हिद्दत नहीं रही आख़िर को तेरे ग़म भी मुझे रास आ गए शाम-ए-फ़िराक़ में भी वो शिद्दत नहीं रही मुझ को पता चला तो मैं हैरान रह गया हम साथ हैं मगर वो रिफ़ाक़त नहीं रही वो हिचकियों से रोता रहा और मैं चुप रहा शायद ये सच है मुझ को मोहब्बत नहीं रही