तुझ को मुश्किल नहीं मुश्किल मिरी आसाँ कर दे ख़ाक के ज़र्रे को हम-दोश-ए-सुलेमाँ कर दे मेरे आ'माल नहीं लाएक़-ए-बख़्शिश हरगिज़ तू जो चाहे तो मिरे दर्द का दरमाँ कर दे हैफ़ अब ज़िल्लत-ओ-ख़्वारी के सिवा कुछ भी नहीं या-इलाही हमें पहला सा मुसलमाँ कर दे रब्ब-ए-हाजात हमें निस्बत-ए-कामिल हो अता हम को आईन-ए-सदाक़त का निगहबाँ कर दे तेरे महबूब का आईन है ऐन-ए-फ़ितरत इस में तरमीम के तालिब को पशेमाँ कर दे दीन-ए-हक़ की मैं हिफ़ाज़त करूँ दिल से हर दम मेरे ख़ालिक़ मिरे ईमाँ को फ़रोज़ाँ कर दे कश्ती-ए-जाँ को किनारे से लगाने के लिए हम में हर फ़र्द के ईमाँ को फ़रोज़ाँ कर दे