सुकून-ए-क़ल्ब हो तुम रूह का क़रार हो तुम मिरी हयात-ए-मोहब्बत के राज़दार हो तुम निगाह-ए-नाज़ से लूटे हैं मेरे क़ल्ब-ओ-जिगर असीर-ए-ज़ुल्फ़ किया उस के ज़िम्मेदार हो तुम मिरे ज़मीर ने समझा मिरी नज़र ने कहा मिरी तलब के लिए हुस्न-ए-इंतिज़ार हो तुम सुकून-ए-क़ल्ब मिला है हमारी महफ़िल में मिरी निगाह का मरकज़ हो मेरे यार हो तुम जुदा जुदा हैं निगाहें जुदा जुदा है ख़याल मिरी निगाह में बस शान-ए-किर्दगार हो तुम मिरे चमन की तबाही किसी को क्या मालूम ख़िज़ाँ-रसीदा चमन की मिरे बहार हो तुम जहाँ में अपने पराए सभी मुख़ालिफ़ हैं 'ग़ुबार' ग़म में मगर मेरे ग़म-गुसार हो तुम