तुझ को पाने के लिए ख़ाक-ए-तमन्ना हो जाऊँ तेरे क़दमों में बिखर कर तिरा रस्ता हो जाऊँ और कब तक मैं करूँ मदह-सराई अपनी मुझ को तौफ़ीक़ दे या-रब कि मैं तेरा हो जाऊँ तुझ को कोई भी कभी मेरे सिवा देख न पाए आँख में भर लूँ तुझे और मैं अंधा हो जाऊँ चंद लम्हों के लिए ख़ुद को मुकम्मल देखूँ बे-इरादा ही सही मैं कभी यकजा हो जाऊँ फ़िक्र-ए-उक़्बा न करूँ तुझ में गिरफ़्तार रहूँ शायरी तेरे लिए मैं सग-ए-दुनिया हो जाऊँ ये करिश्मा भी किसी रोज़ तो रौशन हो जाए तू मिरी आरज़ू में तेरी तमन्ना हो जाऊँ मैं कि अम्बोह-ए-अज़ीज़ाँ में किसी का भी नहीं ज़िंदगी मुझ से लिपट जा कि मैं तेरा हो जाऊँ ये अजब शर्त है तस्लीम-ओ-रज़ा की 'अख़्तर' ख़ुद को पहचानना चाहूँ तो मैं अंधा हो जाऊँ