तुझ को सोचूँ मैं सू-ब-सू हो कर मैं तो बस रह गई हूँ तू हो कर ये तिरे लम्स का करिश्मा है फैल जाती हूँ रंग-ओ-बू हो कर तू न हो तो मैं बाँझ मिट्टी हूँ राख हो जाऊँ बे-नुमू हो कर है तिरी क़ैद में ही आज़ादी ढाँप ले मुझ को चार सू हो कर आइना हूँ तिरे वजूद का मैं आ कभी देख रू-ब-रू हो कर 'नाज़' के लब पे हर घड़ी रक़्साँ तू ही रहता है गुफ़्तुगू हो कर