तुझ से हम-दम मुझ को उल्फ़त है बहुत तेरी उल्फ़त वज्ह-ए-राहत है बहुत तुम अभी तो आए हो मेरे क़रीब किस लिए जाने की उजलत है बहुत सूरत-ए-परवाना मिट जाऊँगा मैं मुझ में मिट जाने की हिम्मत है बहुत तेरे रुख़ से माँग लाए हैं निखार इस लिए फूलों में रंगत है बहुत बस्तियों में आ गए हैं भेड़िये शहर में हर सम्त दहशत है बहुत 'दाग़' बाक़ी है अभी क्या बरहमी ज़ुल्म की मुझ पर जो शिद्दत है बहुत