वजूद उस से हमारा कहीं जुदा न लगे वो साथ साथ रहे और हमें पता न लगे वक़ार में जो इज़ाफ़ा है आप को मंज़ूर सँभल के चलिए जहाँ की कहीं हवा न लगे फ़रेब-ओ-मक्र पे इनआ'म लोग पाते हैं मैं बात सच भी कहूँ और ताज़ियाना लगे हमारी ज़ात से पहले गुरेज़ था उस को अब ए'तिराफ़-ए-नवाज़िश उसे बुरा न लगे इलाही तुझ से गुज़ारिश है बार बार यही मिरे सनम को किसी की भी बद-दुआ' न लगे जज़ीरा दिल का है सूना तुम्हारी याद बग़ैर चले भी आओ कि मौसम बड़ा सुहाना लगे वो भूल सकता है ऐ 'दाग़' मुझ को जल्द मगर उसे भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे