तुझ से महव-ए-गुफ़्तुगू होना पड़ा मैं से हिजरत कर के तू होना पड़ा मैं अभी जी-भर के जी पाया न था मौत तेरे रू-ब-रू होना पड़ा मैं परेशानी में घिरता था कभी और हैराँ भी कभू होना पड़ा मेरी हसरत थी कभी तू माह-वश मुझ को तेरी आरज़ू होना पड़ा सामने लश्कर था जो वो हक़ पे था हक़ पे मुझ को ऐ अदू होना पड़ा तुझ से मिलता-जुलता होना चाहा था हो गया तो हू-ब-हू होना पड़ा