तुझ से मिलने की आरज़ू है बहुत इस लिए तेरी जुस्तुजू है बहुत ज़िंदगी के निगार-ख़ाने में एक मैं और एक तू है बहुत नासेह-ए-मोहतरम ख़ुदा-हाफ़िज़ आज इतनी ही गुफ़्तुगू है बहुत गर्दिश-ए-वक़्त तुझ से लड़ने को इन रगों में अभी लहू है बहुत सारी दुनिया की बेटियाँ सुन लें इस ग़रीबी में आबरू है बहुत