तीरगी हो कि हो तनवीर लहू मांगेगी हर नए दौर की ता'मीर लहू मांगेगी इस से अच्छा है कि ख़्वाबों का भरोसा न करो ख़्वाब देखोगे तो ता'बीर लहू मांगेगी दश्त-ए-वहशत में तो उस वक़्त मज़ा आएगा जब मिरे पाँव की ज़ंजीर लहू मांगेगी तुम मिरे सामने अब जंग की बातें न करो न्याम से निकली तो शमशीर लहू मांगेगी मैं ये ही सोचता रहता हूँ शब-ओ-रोज़ 'अख़्तर' कब तलक वादी-ए-कश्मीर लहु मांगेगी