तुझ से वादा अज़ीज़-तर रक्खा वहशतों को भी अपने घर रक्खा अपनी बे-चेहरगी छुपाने को आईने को इधर उधर रक्खा इक तिरा ग़म ही अपनी दौलत थी दिल में पोशीदा बे-ख़तर रक्खा आरज़ू ने कमाल पहचाना और तअल्लुक़ को ताक़ पर रक्खा इस क़दर था उदास मौसम-ए-गुल हम ने आब-ए-रवाँ पे सर रक्खा अपनी वारफ़्तगी छुपाने को शौक़ ने हम को दर-ब-दर रक्खा कलमा-ए-शुक्र कि मोहब्बत ने हम को तम्हीद-ए-ख़्वाब पर रक्खा उन को समझाने अपना हर्फ़-ए-सुख़न आँसुओं को पयाम पर रक्खा