तुझे क्या बताऊँ मैं हम-नशीं मिरी ज़िंदगी का जो हाल है न मसर्रतों की कोई ख़ुशी न ग़मों का कोई मलाल है ये अजब तरह की है ज़िंदगी न फ़िराक़ है न विसाल है उन्हें छोड़ दूँ ये रवा नहीं उन्हें पा सकूँ ये मुहाल है ये तो सच है नासेह-ए-मोहतरम ग़म-ए-दिल का चाहिए कुछ भरम न हो मुस्तहिक़्क़-ए-जफ़ा भी जब तो वफ़ा की किस को मजाल है मिरी हर नज़र से उन्हें गिला है अज़ाब-ए-जाँ मिरी हर अदा करम-ओ-वफ़ा का ये है सिला ये मोहब्बतों का मआल है मिरी बात बात में ऐब है मिरा हर ख़ुलूस फ़रेब है मिरा दिल भी कितना अजीब है मुझे फिर भी उन का ख़याल है जहाँ अश्क क़तरा-ए-आब हों जहाँ नाले वज्ह-ए-इताब हों वहाँ बार-बार सदा-ए-ग़म ये नियाज़-ए-ग़म का कमाल है