वो बा-वफ़ा नहीं न सही बेवफ़ा तो है दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में इक राब्ता तो है अब क्या करें कि ये भी गवारा नहीं उन्हें आदाब-ए-ग़म में वैसे तबस्सुम रवा तो है हम को न क्यों अज़ीज़ हों दुनिया के पेच-ओ-ख़म ज़ुल्फ़ों से तेरी दूर का इक वास्ता तो है तू ही बता कहाँ है तिरी बे-रुख़ी का ज़िक्र तू ने भी क़िस्सा-ए-ग़म-ए-उल्फ़त सुना तो है उन की नज़र से हो कि ज़माने की चाल से दुनिया-ए-दिल में हश्र हमारी बपा तो है क्या ये भी तेरे ज़ौक़-ए-जफ़ा को है नागवार अपनी वफ़ा को मैं ने वफ़ा हाँ कहा तो है माना कभी जफ़ा का न शिकवा किया 'शफ़ीक़' उन की इनायतों से तुम्हें अब गिला तो है