तुझे क्या नासेहा अहबाब ख़ुद समझाए जाते हैं इधर तू खाए जाता है उधर वो खाए जाते हैं चमन वालों से जा कर ऐ नसीम-ए-सुब्ह कह देना असीरान-ए-क़फ़स के आज पर कटवाए जाते हैं कहीं बेड़ी अटकती है कहीं ज़ंजीर उलझती है बड़ी मुश्किल से दीवाने तिरे दफ़नाए जाते हैं उन्हें ग़ैरों के घर देखा है और इंकार है उन को मैं बातें पी रहा हूँ और वो क़समें खाए जाते हैं ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे नाला-हा-ए-शाम-ए-फ़ुर्क़त से ज़मीं भी काँपती है आसमाँ थर्राए जाते हैं कोई दम अश्क थमते ही नहीं ऐसा भी क्या रोना 'क़मर' दो-चार दिन की बात है वो आए जाते हैं