तुझे तो आज भी हम बे-शुमार चाहते हैं इक और तरह का लेकिन क़रार चाहते हैं हमारा मसअला ये है कि शाम होते ही हम अपने आप से थोड़ा फ़रार चाहते हैं पलटने वाले तुझे पहले ही बताया था किसी भी शख़्स को हम एक बार चाहते हैं ये लोग क्यूँ भला थकते दिखाई देते नहीं अब और कितना तिरा इंतिज़ार चाहते हैं हमारे तजरबे इतने ज़ियादा ठीक नहीं सो तुझ से प्यार नहीं ए'तिबार चाहते हैं ख़ुदा हवस से बचाए मगर कई दिन से तिरे बदन पे भी हम इख़्तियार चाहते हैं