तुझ से अब रिश्ता निभाना भी नहीं चाहता है दिल तुझे छोड़ के जाना भी नहीं चाहता है ये अजब बात है वो मेरा तलबगार भी है और मुझे अपना बनाना भी नहीं चाहता है तू मुझे छोड़ रहा है तो शिकायत कैसी तू मिरा हो ये ज़माना भी नहीं चाहता है वो अगर रूठ गया है तो उसे जाने दो अब ये दिल उस को मनाना भी नहीं चाहता है तुझ को फ़ुर्सत ही नहीं है तो कोई बात नहीं हाल-ए-दिल कोई सुनाना भी नहीं चाहता है मैं तिरे नाम से रुस्वा हूँ मुझे फ़िक्र नहीं दिल कहीं और ठिकाना भी नहीं चाहता है ज़ुल्म-ए-बातिल की शिकायत भी सभी के लब पर और कोई संग उठाना भी नहीं चाहता है जिस क़दर टूट के चाहा है उसे मैं ने 'फ़राज़' इस तरह कोई दिवाना भी नहीं चाहता है