तुझ से क्या निस्बत कि थे लैला के काले हाथ पाँव हक़ ने तेरे नूर के साँचे में ढाले हाथ पाँव हाथ पकड़े मुझ को खींचे फिर सू-ए-दश्त-ए-बला ऐ जुनूँ अब कर दिए तेरे हवाले हाथ पाँव ख़्वाह बाँधें ख़्वाह जकड़ें इन को ज़ंजीरों में वो हम ने उन ज़ुल्फ़ों के हाथों बेच डाले हाथ पाँव हाथ उलझे जेब से फिर पाँव लिपटे ख़ार से हम ने ज़िंदाँ से निकलते ही निकाले हाथ पाँव सर सिनाँ ने सीना ख़ंजर ने लिया नावक ने दिल हैं ये तेरी नज़्र ऐ तेग़-ए-जफ़ा ले हाथ पाँव कर दिया है चूर हम को नश्शा-ए-उल्फ़त ने 'दाग़' अब भला कोई सँभलते हैं सँभाले हाथ पाँव