तुझे नामा-बर क़सम है वहीं दिन से रात करना कोई एक बात पूछे तो हज़ार बात करना नहीं और ख़ौफ़ क़ासिद मगर एक बात का है जो रक़ीब भी वहाँ हो बहुत इल्तिफ़ात करना वो हो तेज़-रौ न पाए कोई तुम को हज़रत-ए-दिल रह-ए-दोस्त में जो चलना तो हवा को मात करना मिरे दिल की क़ीमत इतनी न बढ़ाओ कौन लेगा जो तुम्हें न जानता हो ये उसी से घात करना निकल आएँगे वो बाहर वहीं शोर सुन के ऐ दिल कभी उन के के घर पे जा कर कोई वारदात करना वो करीम क्या नहीं है वो रहीम क्या नहीं है कभी 'दाग़' भूल कर भी न ग़म-ए-निजात करना