तुझ से तदबीर-ओ-अमल कतबा-ए-तक़दीर न देख ख़्वाब सरमाया तिरा ख़्वाब की ता'बीर न देख देख किस फ़र्द के दिल में है सियाही कितनी किस के चेहरे पे है बिखरी हुई तनवीर न देख हर मुसव्विर का ग़म-ए-दिल है तलबगार-ए-नज़र एक ताजिर की तरह ख़ाका-ओ-तस्वीर न देख आज भी जंग के बादल हैं जहाँ पर छाए अहद-नामों से अयाँ अम्न की तहरीर न देख आतिश-ए-क़ल्ब से तेशे हुए अशआ'र 'नदीम' हम-नशीं उन में कभी बर्फ़ की तासीर न देख