टुक इक इंसाफ़ कर इतनी भी करता है जफ़ा कोई करेगा बा'द मेरे किस तवक़्क़ो पर वफ़ा कोई नज़र आता नहीं साबित गरेबाँ एक ग़ुंचे का चमन पर ये सितम करता है ऐ बाद-ए-सबा कोई गुल-ओ-लाला से शोर-अंगेज़-तर हैगी हिना तेरी न हो दीवाना क्यूँ कर देख तेरे दस्त-ओ-पा कोई अजब सज से किया है क़त्ल मुझ को इस को मत टोको तलब करता है ऐसे क़ातिलों से ख़ूँ-बहा कोई गुज़र जा वस्ल से गर हिज्र में देखे रज़ा उस की मोहब्बत में 'यक़ीं' लेता है नाम-ए-मुद्दआ' कोई