तूल-ए-शब सामने इक हिज्र की तन्हाई है दिल के बहलाने को यादों की मसीहाई है दिल है लबरेज़ शिकायत से मगर क्या कीजे पा-ए-आदाब में ज़ंजीर-ए-शकेबाई है उन के वा'दा पे ज़रा मैं जो यक़ीं करने लगा बोले घबरा के क़सम हम ने नहीं खाई है ज़िंदगी भर मुझे आँसू थे रुलाए जिस ने चश्म-ए-तर ले के वो तुर्बत पे मिरे आई है एक शाइ'र के तसव्वुर से कहाँ छुपता है बंद आँखों में छलकती तिरी परछाई है रुक सी जाती है घटा कर के तरश्शोह कुछ दम किस तज़ब्ज़ुब में है क्यों आ के यहाँ छाई है कितनी उम्मीदों से आग़ाज़-ए-सफ़र करते हैं ज़िंदगी क्या है फ़क़त फ़ासला-पैमाई है हम ने सीखा है ये नैरंग-ए-ज़माना से 'अमीर' न मसीहा है यहाँ और न मसीहाई है