तुलू-ए-सुब्ह से कब कब ज़वाल-ए-शब से हुआ जहाँ में नूर फ़क़त बर्क़-ए-नुत्क़-ओ-लब से हुआ जुदा जुदा थे बहुत नेक-नाम हम दोनों मलामतों का हदफ़ हैं मिलाप जब से हुआ मिले हो तुम तो हुई क़द्र दिल को लम्हों की गुज़र चुकी है बहुत पर हिसाब अब से हुआ हर एक चाहने वाला बना है ख़ुसरव-ए-ग़म दयार-ए-इश्क़ में ये इंक़लाब कब से हुआ लहू की धार को समझे हक़ीर ख़ंजर से ज़वाल साहब-ए-जानाँ इसी सबब से हुआ किसी अदा को सितम कह दिया किसी को करम ये इख़्तियार दिल-ए-ज़ार तुम को कब से हुआ सजी हैं दिल में तुम्हारे करम की तस्वीरें इधर से ग़म का गुज़र भी बड़े अदब से हुआ