तुम अच्छे मसीहा हो दवा क्यूँ नहीं देते बे-नूर जो है शम्अ' बुझा क्यूँ नहीं देते बे-नाम हूँ बे-नंग हूँ ज़ाहिर तो है तुम पर गर रब्त नहीं दिल से भुला क्यूँ नहीं देते ख़ुशबू की तरह फूल की उठ्ठूँगा चमन से तो फूल को ज़ुल्फ़ों से गिरा क्यूँ नहीं देते पहुँचूँगा कशाकश में जहाँ तुम ने बुलाया तुम हश्र के मैदाँ से सदा क्यूँ नहीं देते महफ़िल में अगर रौनक़-ए-महफ़िल है कोई और ये बात भी महफ़िल को बता क्यूँ नहीं देते इक बूँद सी लर्ज़ां है सर-ए-चश्म-ए-तमन्ना नायाब नहीं आब गिरा क्यूँ नहीं देते ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा मौत मिली है फिर कर्दा-गुनाहों की सज़ा क्यूँ नहीं देते ज़ख़्मों को मिरे दिल पे अगर देख लिया है दामन से वफ़ाओं की हवा क्यूँ नहीं देते देखा था कभी हम ने मोहब्बत का जनाज़ा बाक़ी है अगर कुछ तो दिखा क्यूँ नहीं देते हर लम्हा हमारा ही फ़साना है ज़बाँ पर हम कुछ भी नहीं हैं तो भला क्यूँ नहीं देते कर लेंगे हर इक मंज़िल-ए-दुश्वार को सर हम इक जाम मोहब्बत का पिला क्यूँ नहीं देते