है कौन जिस से कि वादा ख़ता नहीं होता मगर किसी का इरादा ख़ता नहीं होता जहाँ बिसात पे घिर जाए शाह नर्ग़े में वहाँ कभी भी पियादा ख़ता नहीं होता वो दुश्मनों में अगर हो तो बच भी जाऊँ मैं उसी का वार मबादा ख़ता नहीं होता जो सर बचे भी तो दस्तार बच नहीं सकती निशाना उस का ज़ियादा ख़ता नहीं होता किसी की गर्द-ए-सफ़र बैठते भी देखेंगे हमारी नज़रों से जादा ख़ता नहीं होता हैं तजरबे मिरे एहसानमंद लफ़्ज़ों के हो शक्ल या कि लबादा ख़ता नहीं होता